नववर्ष 2023🌄🌱
श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही है। वे अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं कि जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नये स्वयं वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने तथा जीर्ण-शीर्ण शरीर को त्यागकर नवीन देह धारण करता है। यदि आत्मा जैसा अविनाशी तत्व नवीनता की आवश्यकता से परे नहीं है, तो फिर इस विनाशी भौतिक शरीर के लिए नयेपन की अनिवार्यता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
श्रीकृष्ण के इस कथन से सुख की प्राप्ति का यह एक सरल-सा सूत्र तो हमारे हाथ आता ही है कि ‘नवीनतम अपने आप में ही सुखद होता है।‘ चूंकि जड़ता से, स्थिरता से ऊब की दुर्गंध उठने लगती है, इसलिए जरूरी है कि चेतन हुआ जाए, गतिशील हुआ जाए। इससे कुछ तो बदलेगा और यह बदलाव सुख देगा।
वस्तुतः सुख भौतिक वस्तुओं पर आश्रित नहीं होता है। यह भौतिक वस्तुओं के प्रति हमारी प्रतीति पर आधारित है।
आप जो नये वर्ष का उत्सव मनाएंगे, उसमें दिनांक के अतिरिक्त और क्या नवीन है? ऐसा तो प्रतिदिन ही होता है, फिर चाहे वह दिन, सप्ताह और मास के रूप में ही क्यों न हो। यह एक जनवरी के प्रति मात्र आपकी प्रतीति ही है, जो इ...