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अध्यात्मिक ज्ञान।

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आध्यात्मिक जीवन सेवा से प्रारम्भ होता है। भारतीय जीवन दर्शन का मूल सिद्धान्त सेवा ही था। सिद्धांत था 'पहले सेवा करो, प्रेम करो, दान दो, शुद्ध बनो; तब ध्यान, फिर अनुभूति।' ध्यान तो साधनाक्रम में बहुत बाद में आता था। लोगों का आध्यात्मिक जीवन ध्यान से शुरू होता है, जबकि भारतीय जीवन दर्शन का आध्यात्मिक जीवन ध्यान में समाप्त होता है। संसार में जरुरतमंद व्यक्ति आपके आध्यात्मिक जीवन के चुनौती हैं, चाहे वे बिहार ,दक्षिण भारत, पुर्वी या उत्तर भारत, एशिया, अफ्रीका या संसार में कहीं भी हों। वे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से कष्ट से गुजर रहे हैं। अपनी आय का कितना प्रतिशत आप उनपर खर्च करते हैं?  अपनी आमदनी का दसवाँ हिस्सा भगवान की प्रकृति, भगवान की माया, भगवान के भक्तों के लिये खर्चा होना चाहिए। यह आध्यात्मिक जीवन का प्रयोजन है। नहीं तो भगवान के बारे में बात मत करिए। तीस दिन का दसवाँ हिस्सा हुआ तीन दिन। तीन दिन में जितना आप अपने भोग के लिए खर्च करते हैं, किसी गरीब की पढ़ाई के काम में लगा दिजिए। आप गरीब की सेवा कैसे करेंगे? आप  अपने आपको बताइए। यदि आप ईश्वर को पाना चाहते है...