दोस्ती

साँस लेना छोड़ 
सकते हो तय करके?

तो दोस्तियाँ कैसे 
तोड़ लेते हो तय करके?

जो तय करके टूटी है दोस्ती, 
वो फिर तय करके हुई भी होगी!

और तय करके जो होता हो, 
वो तो स्वार्थवश ही होता है!

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