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Showing posts from May, 2024

तितिक्षा

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कल्पना कीजिए कि आप खाना बना रहे हैं। तेल या घी के गर्म होने पर, आप जैसे विभिन्न सामग्रियां - सब्जियां, मसाले इत्यादि बर्तन में डालते हैं, सुसंगत तापमान बनाए रखने की आवश्यकता होती है। यदि बर्तन अधिक गर्म है, तो आपका पकवान जल सकता है। यदि तापमान कम है, तो शायद पकवान कच्चा ही रह जाए। पूरी प्रक्रिया के दौरान, आपको यह सुनिश्चित करने के लिए तापमान को सावधानीपूर्वक समायोजित करना होगा ताकि सम्पूर्ण सामग्री कुछ समान रूप से पक जाए। यह सचेतन नियमन और परिणाम पर निरंतर निगरानी रख कर व्यंजन तैयार करने वाले लम्बे लगने वाले समय को स्वीकार करना भारतीय दर्शन में 'तितिक्षा' की अवधारणा के समान है। यह किसी खेल के समान है- हमें ध्यान से खेलना है, परिश्रम करना है ताकि हम अच्छे परिणाम प्राप्त करें। संस्कृत शब्द तितिक्षा पर अक्सर वेदांत और योग परंपराओं में चर्चा की गयी है, जिसे सहनशीलता या धीरज के मानसिक दृष्टिकोण के समरूप माना गया है। यह गुण जीवन की विभिन्न चुनौतियों के बीच समभाव और संयम बनाए रखने के बारे में है। यह ठीक वैसा ही है जैसे आपके पकवान के बर्तन की देखभाल - जिसके लिए आपके धैर्य ...

धैर्य

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बचपन में पहली दौड़ प्रतियोगिता याद है। एक-दो-तीन की गिनती और फिर सब अपनी अपनी पंक्ति में तेजी से दौड़ते। पचास-सौ मीटर की इस छोटी सी दौड़ में भी होड़ थी कि पहला नंबर कौन आता है। फिर प्रतियोगिता रही परीक्षाओं में अधिक से अधिक अंक प्राप्त करने की फिर अच्छे कॉलेज में प्रवेश, और फिर सबसे अधिक वेतन वाली नौकरी की।  ये प्रक्रिया चलती रही।  हम आगे बढ़ते रहे। जब जीते तो हमें प्रसन्नता हुई। जब हार गए तो हमें दुःख हुआ। इस पूरी यात्रा   में कुछ कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने न तो प्रतिस्पर्धा में भाग लिया, न दुःखी हुए। हमने उन्हें सफल नहीं माना। कमजोर भी समझ लिया। क्या हमने धैर्य रखा? हां, हमने धैर्य तो रखा लेकिन जो लोग प्रतिस्पर्धी नहीं थे, उन्हें भी हेय दृष्टि से देखा। यह भी मान लिया कि वे अपना अमूल्य समय बर्बाद कर रहे हैं। किन्तु सत्य तो कुछ और ही था।  वे अपनी गति से, धैर्य से आगे बढ़ते रहे। स्वयं के लिए सफलता के स्तर चुनते गए और सुखी रहे। किन्तु हम यह नहीं समझ सके क्योंकि यह मानव स्वभाव है और यह हमारी आदत बन गयी है। धैर्य को कम आंका गया है। लेकिन न सिर्फ प्रतिस्पर्धा में...

"यथार्थ को जानिए "

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प्रकृति के नियमों में यह एक महत्वपूर्ण सत्य है कि सभी धर्म, पद, प्रतिष्ठा, और धन अनित्य हैं। इस अनित्यता का खोज उपरांत हम यह समझते हैं कि सच्चा सुख और संतोष अंतर्निहित होता है, न कि बाह्य वस्तुओं में। त्याग और नाश, ये दोनों ही अहम वास्तविकताओं के पहलू हैं। त्याग करना वास्तविक स्वतंत्रता का प्रतीक है, जबकि नाश स्वयं की अनुभूति के बिना वस्तुओं का अस्तित्व का अन्त होता है। इसी तरह, हमें यह समझना चाहिए कि सभी धर्म, पद, प्रतिष्ठा, और वैभव केवल माया हैं, जो विस्थापित होती है और फिर अपने आप ही नष्ट होती हैं। हमें इस बात का आदर्श बनाकर, आत्म-समर्पण और संतोष के मार्ग पर अग्रसर होना चाहिए।  इस प्रकार, हमें अपने जीवन को अनित्यता के बीच उदारता और सहानुभूति के साथ जीना चाहिए। यह हमें वास्तविक संतोष और स्थिरता की ओर ले जाएगा, जो हमें आत्मिक शांति और पूर्णता की अनुभूति देगा। प्रकृति में सदा कुछ भी अस्थायी है, यह एक महत्वपूर्ण सत्य है जिसे हमें स्वीकार करना चाहिए। जीवन का मूल्य और महत्व समझने के लिए हमें अनित्यता के इस तत्व को समझना आवश्यक है। इसलिए हमें उदारता और सहानुभूति के साथ जीने...