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Showing posts from August, 2024

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आदमी जब बेचैन होता है तो ऊपर से बिल्कुल शांत दिखता है। वह सबकुछ सामान्य दिखाने की सफल कोशिश करता है। सबसे गर्मजोशी से मिलना, हँसकर बातें करना, आपकी जरुरी बातों को ध्यान दिलाना जैसे सारे काम करता है।  लेकिन ध्यान से देखें तो आपको उसकी हँसी में एक फीकापन, एक बनावटीपन और एक औपचारिकता ज़रूर दिखेगी जिन्हें वो छुपाना चाहते हैं।  अगर आप किसी अपने को लंबे अरसे से जान रहे हैं तो आप उस अभिनय को पहचान लेंगे अन्यथा आपका होना उसके लिए व्यर्थ है। हर आदमी चाहता है कि उसकी उदासी पढ़ी जाए उसके किसी प्रिय द्वारा। आप वो प्रिय नहीं बन पा रहे तो उसमें आपकी विफलता है।  आखिरी बार आप में से कितने लोगों ने बिना कारण के किसी अपने दोस्त या प्रिय को मैसेज/ कॉल करके उससे उसका हाल पूछा है? अगर आप हैं तो आपको मोहब्बत भेज रहा हूं और बाकियों को लानतें।  जीवन जीने का एक ही और अंतिम तरीका है स्वयं को खुश रखने के साथ- साथ अपने आसपास के लोगों का ख्याल रखना। आपसे में से कुछ लोग होंगे जो कहेंगे कि " मैं ही क्यों रखूं?" बात ऐसी है कि जहां हम कारण ढूंढने लगते हैं वहाँ केयर नहीं होती, वहाँ प्रेम नहीं होता।...

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स्त्रियों ने सदैव पुरुषों के इशारों पर जीवन जिया है। बचपन से लेकर आजक स्त्रियों का अपना कोई फ़ैसला नहीं होता।  कपड़ा, लता, खाना पीना का फैसला को छोड़ दें तो उसे किस से बात करनी है, किसके पास रहना है, कैसे जीवन जीना है, क्या पहनना है, कितना पहनना है, जॉब करनी है या घर में ही रहना है। सब कुछ फैसले मर्दों का है। आज बेटीयाँ सुरक्षित नहीं हैं इसका श्रेय भी पुरुषों को ही जाता है।  ये समाज की हार है कि हमारी बेटियाँ खौफ़ में हैं। कहीं भी अकेली आने जाने में डर है। कुछ ही दिन बीतते हैं जब लड़कियाँ सोचती है कि अकेली कभी सड़क पर घूमूं परन्तु पुनः कोलकाता जैसी खबर आ जाती है। जो स्त्रियाँ अपने अंदर एक ऊर्जा भरी होती है, एक पहचान बनाने के लिए घर से दूर जाना चाहती है फिर से उन्हें घर मे कैद कर दिया जाता है। कहा जाता है घर में रहो, सुरक्षित रहोगी। बाहर खतरा है, बाहर दरिंदे घूम रहे हैं। पर एक सवाल है, उन दरिदों के भी तो बहनें होती होंगी? उन्हें ये ख्याल क्यू नहीं आता कि स्त्रियाँ भी किसी की बहन है। चलो माना आप स्त्रियों की इज्जत नहीं करतै लेकिन उन मर्दों की करो जिनकी बहनें हैं। ...