दिपावली


धरा और गगन के बीच
नभ के समानांतर 
खींच गये हैं अनगिनत
प्रकाशपुंज
प्रज्वलित किए है 
असंख्य
मृत्तिका दीप रेखाएं
चहूंओर

अमावस की निशा
तिमिर और प्रकाश के
इस संघर्ष में
आलोक को जिताना है,

बस एक दिया
अंतर्मन मे भी जलाना है
अपने अन्तर के रण में
अंदर के तमदैत्य 
को भी हराना है।


शुभ दीपावली

Comments

Popular posts from this blog

स्वयं की अंतर यात्रा

आश्रय

मेला