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Showing posts from November, 2024

गरीब रिस्तेदार 🍂

गरीब रिस्तेदारो के ताजा हाल हमारे पास नहीं होते, उनका जिक्र हमारी बातचीत में नहीं आता हम हमेशा जल्दी में होते हैं और हमारी गाड़ियां उनके दरवाजों से सीधी गुजर जाती है। एक दिन फोन आता है मौसेरे भाई का पता चलता है मौसी गुजर ग‌ई , साल भर से बिमार चल रही थी वह कहता है दुमका में सभी डॉक्टर्स को दिखाया और सरकारी अस्पतालों का हाल आप जानते हीं हो भ‌ईया वह बिना पुछे हीं बोले जा रहा है अगले गुरुवार को श्राद्धकर्म है आ जाना भ‌ईया अगले गुरुवार को श्राद्धकर्म है। एक दिन लेकर चले आते हैं विवाह का आमंत्रण कार्ड  तब हमें पता चलता है जिस लड़के को देखे ग्यारह साल हो ग‌ए थे अगले माह की सात तारीख को उसका हीं विवाह है, वे बड़े भोलेपन से कहते हैं, कमाने लगा है अब अपना परिवार संभाल लेगा । एक दोस्त को जानता हूं वो अपने शहर के सब्जी बाजार नहीं जाता उसके बड़े भाई का साला सब्जी बेचता दिख जाता है उसे लाज बहुत आती है । अशोक राजपथ से किताबें खरीद कर स्टेशन लौटते हुए  दिखे दुर के एक रिश्तेदार , मामा आप यहां पटना में , कैसे? बदहवासी में वह कह रहे थे ओटो पलट गया था  पैर टूट गया है बेटे का PMCH में भर्ती ...

स्वयं की अंतर यात्रा

क भी सोचा है कि क्या होगा अगर हम ये समझ सकें कि आंतरिक शांति की कुंजी बाह्य कारकों पर नहीं, बल्कि हमारे भीतर के संतोष में ही निहित है? यह यात्रा केवल आत्म-जागरूकता का अभ्यास नहीं है, यह एक परिवर्तनकारी मार्ग है जो गहन आंतरिक शांति की ओर ले जाता है। प्राचीन योग दर्शन में निहित एक अवधारणा, ' संप्रज्ञात समाधि', इस मार्ग का वर्णन करती है। यह एक क्रमिक प्रक्रिया है, एक प्रगति है जो अभ्यासकर्ता को स्वयं और ब्रह्मांड के साथ एकता के अनुभव की ओर ले जाती है। सम्प्रज्ञात शब्द दो संस्कृत मूलों से आया हैः ' सम ' जिसका अर्थ है ' एक साथ' या 'पूर्ण ' और ' प्रज्ञा ', जिसका अर्थ है ' ज्ञान' या 'जागरूकता ।' यह पूर्ण जागरूकता या ज्ञान की स्थिति को दर्शाता है। दूसरी ओर, समाधि गहन ध्यान की एक अवस्था को संदर्भित करती है, जहां मन पूरी तरह से ध्यान की वस्तु पर केंद्रित और एकीकृत होता है। सम्प्रज्ञात समाधि में, अभ्यासी का मन सक्रिय होता है, लेकिन यह एक उच्च उद्देश्य की ओर निर्देशित होता है। इसमें मन ध्यान की वस्तु पर केंद्रित रहता है जबकि जागरूकता और अंत...