गरीब रिस्तेदार 🍂


गरीब रिस्तेदारो के ताजा हाल हमारे पास नहीं होते, उनका जिक्र हमारी बातचीत में नहीं आता हम हमेशा जल्दी में होते हैं और हमारी गाड़ियां उनके दरवाजों से सीधी गुजर जाती है।

एक दिन फोन आता है मौसेरे भाई का पता चलता है मौसी गुजर ग‌ई , साल भर से बिमार चल रही थी वह कहता है दुमका में सभी डॉक्टर्स को दिखाया और सरकारी अस्पतालों का हाल आप जानते हीं हो भ‌ईया वह बिना पुछे हीं बोले जा रहा है अगले गुरुवार को श्राद्धकर्म है आ जाना भ‌ईया अगले गुरुवार को श्राद्धकर्म है।

एक दिन लेकर चले आते हैं विवाह का आमंत्रण कार्ड  तब हमें पता चलता है जिस लड़के को देखे ग्यारह साल हो ग‌ए थे अगले माह की सात तारीख को उसका हीं विवाह है, वे बड़े भोलेपन से कहते हैं, कमाने लगा है अब अपना परिवार संभाल लेगा ।

एक दोस्त को जानता हूं वो अपने शहर के सब्जी बाजार नहीं जाता उसके बड़े भाई का साला सब्जी बेचता दिख जाता है उसे लाज बहुत आती है ।

अशोक राजपथ से किताबें खरीद कर स्टेशन लौटते हुए  दिखे दुर के एक रिश्तेदार , मामा आप यहां पटना में , कैसे? बदहवासी में वह कह रहे थे ओटो पलट गया था  पैर टूट गया है बेटे का PMCH में भर्ती है , अच्छा है तु मिल गया बेटा , मैं यहां किसी को नहीं जानता अच्छा है तु मिल गया, मामा मैं भी यहां किसी को नहीं जानता पटना में हमारा रेल में रिजर्वेशन है मामा नहीं तो देखने के लिए आता भगवान पर भरोसा रखिए सब ठीक हो जायेगा कहता हुआ पिंड छुड़ाता हुआ निकल जाता हूं वहां से।

हम उनके किसी दुःख में शामिल नहीं होना चाहते , उनकी पीड़ा से हमारा दिल पसीजता नहीं हमें लगता है कि हमसे पैसे मांगेंगे बेकार हीं वक्त जाया करेंगे हमारा हमारी संवेदना में कोई पता बस कुछ ही देर के लिए हिल पाता है।

और गरीब रिस्तेदारो के यहां जाओ तो अपनी आंचल से पोंछकर कुर्सी या मोढ़ा आगे करती है एक स्त्री और पुछती है पुरे घर का हाल , खुब सारा दूध की मिठी हो गई चाय आगे करती है और पुरा घर उत्सुकता से चेहरा ताकता रहता है हमारा।

वे कहते हैं कभी कभार आ जाया करो अब कहने को अपने लोग बचे हीं कितने यह खीरा और भिंडी लेते जाओ अपनी हीं बाड़ी के हैं, इस बार आम बहुत आएं हैं पकने पर हम लेकर आयेंगे मां को बोल देना वापसी में एक झोला तरकारियों से भरा हमें पकड़ाते हुए वे कितने विहवत दिखते हैं।

बिजली के तार झूलते रहते हैं गरीब रिश्तेदार के कच्चे पक्के घरों में , उनके बच्चों की हमें खबर नहीं होती वे कब के चले गए हैं दिल्ली सुरत कमाने , उनके बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं, सरकार के मध्यान्ह भोजन के साथ ।

वे दलालों से मिलते हैं और घिघियाते रहते हैं वृद्धा पेंशन और आवास योजनाओं के लिए , वे हमारा जिक्र करते हैं बहुत उत्साह से कि हमारा बड़ा मकान है शहर में और हम सब सरकारी नौकरियों में हैं ।

और हमारे मोबाइल फोन में उनका नम्बर तक नहीं होता।

😔😔😔🍂🍂🍂


विनम्र बनिए अपनों के प्रति समाज के प्रति ताकि आप में अपनत्व बना रहे।

धन्यवाद पढ़ने के लिए।

यह कविता विनय सौरभ जी ने लिखा है।।
साभार 🍃🌼




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