आश्रय
वर्तमान समय में जहां आंतरिक शांति की खोज में हम सभी एक-एक क्षण में शान्ति सहेजने का प्रयास करते हैं, वहां एक प्राचीन अवधारणा एक स्थायित्व प्रदान करती हैः आश्रय - अर्थात आत्मा की दिव्य निवास । क्या है यह आश्रय ? साधारण शब्दों में, कल्पना करें कि आप अत्यंत परेशानी में है, किन्तु किसी ऐसे व्यक्ति से बात करते हैं जिससे चर्चा कर के आपकी चिंता दूर हो जाती है। जहां सब कुछ स्थिर प्रतीत होता है और आप जीवन की अराजकता में शांति महसूस करते हैं यही आश्रय का मूल भाव है। ऐसा भाव जो भौतिक दीवारों से बंधा नहीं है नहीं है बल्कि हमारी चेतना की गहराई के भीतर पाया जाता है।
वेदों और उपनिषदों की परंपराओं में निहित, आश्रय आंतरिक शांति के कालातीत खोज का प्रतीक है जो किसी भी अन्य कारक पर निर्भर नहीं है और दिव्य (आत्म संतुष्टि) के द्वार खोलता है।
भगवद्गीता में आश्रय के बारे में चर्चा इस प्रकार की गयी हैः
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ।।
अर्थात, सब धर्मों का परित्याग करके तुम एक मेरी ही शरण में आओ, मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम शोक मत करो।
दिव्य में आश्रय खोजने पर केन्द्रित यह श्लोक हमें सिखाता है कि सच्ची शरण हमारे सांसारिक अनुलग्नकों को आत्मसमर्पण करने, स्वतंत्रता और शक्ति में विश्वास में ढूंढने में निहित है। आश्रय का अभ्यास करना निश्चित ही कठिन है, किन्तु असंभव नहीं।
उपनिषदों में भी, आश्रय को 'स्वयं में शरण लेने' के रूप में वर्णित किया गया है। कहा गया है कि आत्मा कभी जन्म नहीं लेती और न ही इसकी मृत्यु होती है। यह किसी से उत्पन्न नहीं हुई, और न ही इसे बनाया गया है। यह शाश्वत, परिवर्तनीय, प्राचीन, और शरीर के विनाश से परे है। भक्ति के मार्ग में, आश्रय को दिव्य आलिंगन के लिए आत्मा की लालसा के रूप में व्यक्त किया जाता है, जो प्रेम के रूप में व्यक्ति को शरण देता है। उस प्रेम के लिए आत्मसमर्पण करना इतना महत्वपूर्ण और असीम है कि यह हमारी ताकत और हमारी खामियों दोनों को आत्मसात करता है। यह हमें सिखाता है कि जब हम स्वयं को उस परम शक्ति से जोड़ने के लिए तैयार करते हैं, तो हम सिर्फ शांति नहीं बल्कि एक गहन शक्ति प्राप्त करते हैं जो मानव सीमाओं से परे है।
आधुनिक जीवन में, आश्रय का विचार तनाव, चिंता, और नियंत्रण की आवश्यकता के लिए एक उपाय हो सकता है। हम अक्सर दुनिया की मांगों से अभिभूत महसूस करते हैं। ऐसे में आश्रय एक वैकल्पिक पथ प्रदान करता है - बाह्य कारकों को देखना बंद करने और आतंरिक शक्ति को खोजना प्रारंभ करने के लिए। ध्यान इस अभ्यास का एक सुंदर तरीका है; जहाँ स्थिरता में बैठकर हमें उस आंतरिक शक्ति को स्पर्श करने में मदद मिलती है। यहाँ दुनिया का शोर क्षीण होता है, और मन में शांति का विकास होता है। एक अन्य शक्तिशाली उपकरण कृतज्ञता है। कृतज्ञता के भाव से हम ऐसे मस्तिष्क का पोषण करते हैं जो कमी पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय जीवन में बहुतायत को देखता है। यह मानसिकता में परिवर्तन हमारे जीवन में एक स्थिर साथी के समान है - जो कदम- कदम पर हमारा अनुस्मारक है कि शांति और ताकत भीतर रहती है।
वैदिक शिक्षाओं में कहा गया है कि वास्तविक आश्रय का अनुभव करने के लिए नियंत्रण का भाव त्यागने की आवश्यकता है। ईशोपनिषद् में कहा गया है कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड को सर्वोच्च शक्ति द्वारा व्याप्त किया जाता है। तो उपभोग मात्र उसका करें जिसकी आपको आवश्यकता हो, और लालसा और लालच का त्याग करें - इनमें से कोई भी आपके लिए लाभकारी नहीं है। जब हम इस ज्ञान को अपनाते हैं, तो हम महसूस करते हैं कि जीवन का आधार बाह्य कारकों के भ्रमित मार्ग में नहीं अपितु प्राकृतिक आदेश में समाहित है। उदाहरण के लिए, अगर आपको मात्र दो रोटी की भूख है, तो दो ही ग्रहण करें। यह सोच कर कि क्या पता अगला भोजन कब होगा, अति भोजन ग्रहण न करें। इससे न सिर्फ आप स्वयं को नियंत्रित करना सीखेंगे, बल्कि यह भी समझ जाएँगे कि आवश्यकता पड़ने पर स्वतः ही आपको भोजन प्राप्त होगा। यह अभ्यास इस ब्रह्मांड में हमारे उद्देश्य को समझने के बारे में है जो विनम्रता और विश्वास के साथ कार्य करते समय हमें समर्थन देता है।
सत्य तो यह है कि आश्रय सिर्फ अपने लिए एक उपहार नहीं है बल्कि इसके माध्यम से हम दूसरों के लिए भी बहुत कुछ कर सकते हैं। वैदिक शिक्षाएं करुणा और दयालुता का अभ्यास करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। वे हमें याद दिलाती हैं कि दूसरों के लिए स्वयं को सुरक्षित व्यक्ति के रूप में स्थापित कर के, हम स्वयं ही दुनिया में आश्रय का स्रोत बन जाते हैं। महाभारत में, हमें राजाओं और ऋषियों के उदाहरण मिलते हैं जिन्होंने सभी प्राणियों को आश्रय दिया - और यह दर्शाया कि सच्ची ताकत तब प्राप्त होती है जब आप जरुरतमंदों की मदद कर सकें। हमारे दैनिक जीवन में, यह प्रियजनों का भावनात्मक समर्थन या मुश्किल समय से गुज़र रहे व्यक्तियों की बातें सुनने जितना सरल कार्य हो सकता है। इस प्रकार, जब हम सहानुभूति और धैर्य का अभ्यास करते हैं, तो हम दुनिया में शांति का विस्तार करते हुए दूसरों के भीतर भी आश्रय का आधार निर्मित करते हैं।
अभ्यास कर के यह भाव हमारे जीवन जीने के तरीके में बदल जाता है। अपने भीतर आश्रय को पहचानकर, हम जीवन में आत्मसमर्पण और स्पष्टता में ताकत प्राप्त कर लेते हैं। हम समझ जाते हैं कि हमारे सबसे चुनौतीपूर्ण क्षणों में भी, हम कभी अकेले नहीं हैं; हम एक सार्वभौमिक उपस्थिति द्वारा 'आयोजित' किए गए हैं हमारे जो 'मार्गदर्शक' हैं और हमारी 'सुरक्षा' करते हैं। अतः हम जिस आश्रय की तलाश करते हैं वह हमारे आसपास के परिवेश को नियंत्रित करने में नहीं है बल्कि उच्च चेतना के प्रति आत्मसमर्पण करने में है। क्या हम सभी इस दिव्य शरण को खोज सकते हैं? निश्चित ।
इससे स्वयं को शांति, आत्मविश्वास और खुले दिल से स्वयं को अपनाने की अनुमति मिलती है, जो आत्म-आश्रय में समायी हुई है।
ओम्
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