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Showing posts from June, 2025

Blood रक्त

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हिमोग्लोबिन और खून को सामान्य करने के लिए आयुर्वेद में कई प्राकृतिक उपचार और जीवनशैली में बदलाव सुझाए जाते हैं। ये उपाय रक्त की कमी (एनीमिया) को ठीक करने, हिमोग्लोबिन बढ़ाने और समग्र स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करते हैं।   नीचे कुछ प्रभावी आयुर्वेदिक उपचार दिए गए हैं:  1. आहार में सुधार - आयरन युक्त खाद्य पदार्थ:    - हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक, मेथी, और बथुआ।   - अनार, सेब, चुकंदर, और गाजर जैसे फल और सब्जियां।   - गुड़, मुनक्का, खजूर, और अंजीर आयरन और विटामिन की पूर्ति करते हैं।   - काले तिल और मूंगफली भी लाभकारी हैं। - विटामिन C युक्त आहार : विटामिन C आयरन के अवशोषण को बढ़ाता है। आंवला, नींबू, संतरा, और टमाटर का सेवन करें। - दालें और अनाज: मूंग दाल, मसूर दाल, और चना आयरन और प्रोटीन का अच्छा स्रोत हैं। - खजूर और दूध: रात को 2-3 खजूर भिगोकर सुबह दूध के साथ लें। यह हिमोग्लोबिन बढ़ाने में मदद करता है। - गुड़ और चना: भुना हुआ चना और गुड़ का नियमित सेवन रक्त की कमी को दूर करता है। 2. आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां - आंवला (Indian Gooseberry)...

"दावा"

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ज़िंदगी एक खोज है, और इस खोज में जो सबसे बड़ा रोड़ा है, वह है दावा—यह दावा कि मैंने जान लिया, समझ लिया, पा लिया। लेकिन सच तो यह है कि जो जानने का दावा करता है, वह अभी द्वार पर भी नहीं पहुंचा। सच्चा ज्ञान दावा नहीं करता, वह तो आग है—जलाने के लिए, मिटाने के लिए, और फिर राख से कुछ नया उगाने के लिए।  जो कहे कि वह बुद्ध को जानता है, वह शायद बुद्ध की मुस्कान का मतलब भी नहीं समझा। बुद्ध ने कभी नहीं कहा कि मैंने सत्य को पकड़ लिया; उन्होंने तो बस इतना कहा कि दुख है, और उससे मुक्ति का रास्ता है। एक बार एक साधु ने गंगा के किनारे बैठे अपने शिष्यों से कहा, “मैंने बुद्ध का सारा दर्शन समझ लिया।” तभी एक नाविक वहां से गुज़रा और उसने पूछा, “महात्मा, आपने बुद्ध को जाना, लेकिन क्या आपने उस मछुआरे को जाना, जो हर सुबह अपने बच्चों के लिए मछली पकड़ता है? क्या आपने उसकी थकान को जाना, उसकी उम्मीद को जाना? साधु चुप हो गए। सच्चा ज्ञान किताबों में नहीं, ज़िंदगी की सांसों में बसता है। जो बुद्ध को जानने का दावा करता है, वह शायद अभी खुद को भी नहीं जान पाया। मार्क्स का सिद्धांत ...

त्याग

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क्या आपने कभी बीज को मिट्टी में गुम होते देखा है? संभवतः नहीं... क्योंकि हम कभी इतना ध्यान ही नहीं देते। हम ध्यान देते हैं जब पहला पत्ता उगता है, या पहला फूल खिलता है या पहला फल आता है। क्या इसका अर्थ है कि बीज तुच्छ था? नहीं। एक छोटा सा बीज, जो बिना कुछ कहे मिट्टी में समा जाता है, और फिर महीनों बाद किसी वृक्ष का रूप लेता है। तो क्या मिटने में ही जन्म छिपा है? क्या फल का गिरना ही आगे बढ़ने की पहली शर्त है? क्या यह केवल प्रकृति का नियम है या जीवन का गूढ़ सत्य भी है? कभी घास को आंधी में झुकते हुए देखा है? क्या उसमें भी कोई मौन शिक्षा छिपी है? एक बीज जब धरती की गोद में समा जाता है, तो वह कुछ नहीं चाहता। न कीर्ति, न पुष्प, न फल। केवल मिट्टी में समा जाता जाता है। और यही उसका सबसे बड़ा आत्म-त्याग है। बीज का धर्म है कि वह स्वयं मिटे, ताकि वृक्ष जन्म ले। यदि बीज बचा रहेगा, तो वृक्ष कभी नहीं आएगा। यह दृश्य तो बाल मन को भी सरल लग सकता है, परंतु इसी में में जीवन का सत्य छिपा है कि जो जाना नहीं चाहता, वह नया जन्म कैसे लेगा? संसार में जितनी भी सुन्दरता है, वह किसी त्याग का प...