क भी सोचा है कि क्या होगा अगर हम ये समझ सकें कि आंतरिक शांति की कुंजी बाह्य कारकों पर नहीं, बल्कि हमारे भीतर के संतोष में ही निहित है? यह यात्रा केवल आत्म-जागरूकता का अभ्यास नहीं है, यह एक परिवर्तनकारी मार्ग है जो गहन आंतरिक शांति की ओर ले जाता है। प्राचीन योग दर्शन में निहित एक अवधारणा, ' संप्रज्ञात समाधि', इस मार्ग का वर्णन करती है। यह एक क्रमिक प्रक्रिया है, एक प्रगति है जो अभ्यासकर्ता को स्वयं और ब्रह्मांड के साथ एकता के अनुभव की ओर ले जाती है। सम्प्रज्ञात शब्द दो संस्कृत मूलों से आया हैः ' सम ' जिसका अर्थ है ' एक साथ' या 'पूर्ण ' और ' प्रज्ञा ', जिसका अर्थ है ' ज्ञान' या 'जागरूकता ।' यह पूर्ण जागरूकता या ज्ञान की स्थिति को दर्शाता है। दूसरी ओर, समाधि गहन ध्यान की एक अवस्था को संदर्भित करती है, जहां मन पूरी तरह से ध्यान की वस्तु पर केंद्रित और एकीकृत होता है। सम्प्रज्ञात समाधि में, अभ्यासी का मन सक्रिय होता है, लेकिन यह एक उच्च उद्देश्य की ओर निर्देशित होता है। इसमें मन ध्यान की वस्तु पर केंद्रित रहता है जबकि जागरूकता और अंत...
वर्तमान समय में जहां आंतरिक शांति की खोज में हम सभी एक-एक क्षण में शान्ति सहेजने का प्रयास करते हैं, वहां एक प्राचीन अवधारणा एक स्थायित्व प्रदान करती हैः आश्रय - अर्थात आत्मा की दिव्य निवास । क्या है यह आश्रय ? साधारण शब्दों में, कल्पना करें कि आप अत्यंत परेशानी में है, किन्तु किसी ऐसे व्यक्ति से बात करते हैं जिससे चर्चा कर के आपकी चिंता दूर हो जाती है। जहां सब कुछ स्थिर प्रतीत होता है और आप जीवन की अराजकता में शांति महसूस करते हैं यही आश्रय का मूल भाव है। ऐसा भाव जो भौतिक दीवारों से बंधा नहीं है नहीं है बल्कि हमारी चेतना की गहराई के भीतर पाया जाता है। वेदों और उपनिषदों की परंपराओं में निहित, आश्रय आंतरिक शांति के कालातीत खोज का प्रतीक है जो किसी भी अन्य कारक पर निर्भर नहीं है और दिव्य (आत्म संतुष्टि) के द्वार खोलता है। भगवद्गीता में आश्रय के बारे में चर्चा इस प्रकार की गयी हैः सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज । अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ।। अर्थात, सब धर्मों का परित्याग करके तुम एक मेरी ही शरण में आओ, मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम शोक...
ग्रामीण भारत में मेला का महत्व बहुत अहम हो जाता है, यह न केवल एक स्थान पर एकत्र होने का अवसर होता है, बल्कि वैश्विकरण का वैश्विक ग्रामीण स्वरुप आपको दिखाई पड़ेगा, जिसमें विभिन्न गांवों के उत्पाद एवं सम्मान आपको मिल जायेंगे। इक्कीसवीं सदी के शुरुआत में मोबाइल इंटरनेट का दौर नहीं था, मनोरंजन के साधन एकमात्र रेडियो एवं कुछ एक जगहों पर टेलिविजन हीं थे। छुट्टियों में क्रिकेट एक महत्वपूर्ण काम होता था, वैसे विद्यालय से आने के उपरांत क्रिकेट दैनिक जीवन का हिस्सा रहता था, मकर संक्रांति पर अंतर ग्रामीण क्रिकेट मैच का जलवा था। गांगुली, द्रविड़, सहवाग को क्रिकेट खेलते रेडियो पर विनीत गर्ग, दोशी जी, जैसे कॉमेंटेटर से आंखों देखा हाल सुनना अलग हीं रोमांचकारी था, गिलक्रिस्ट, हेडेन, मुरलीधरन महान क्रिकेटर थे। हमारे गांव के भी क्रिकेटर थे जैसे नन्द किशोर जी, चंदन शर्मा, हरफनमौला पीटूं जी, रंधीर, पिंटू ( उथप्पा) ,राहुल, राहुल , बुट्टी, एवं अन्य, जो बल्लेबाजी एवं गेंदबाजी में बेहतरीन प्रदर्शन करते थे। प्रिय छोटु जी क्रिकेट के जानकार थे दुनिया के हर एक खिलाड़ी का लेखा-जोखा रखते थे। अब वैश्...
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