प्यार क्या है ?

मनुष्यता के इतिहास में जिन प्रश्नों पर सबसे अधिक चिंतन हुआ है उसमें से एक ये है प्यार क्या है।
तमाम प्रश्नो कि तरह इसका भी एक सही जवाब आजतक नहीं मिल पाया।
जिस तरह दो लोगों के फिंगर प्रिंट एक तरह नहीं हो सकते उसी तरह दो लोगों की प्रेम कि समझ और उसकी परिभाषा एक जैसी नहीं हो सकती।
इस संसार में जितने लोग हैं प्रेम को पाने और प्रेम
और प्रेम को समझने के उतने तरीके हो सकते हैं।
इसके बावजूद प्रेम की कोई एक मान्य परिभाषा नहीं हो सकती।
जिस चिज को मैं प्रेम मानूंगा कोई दुसरा व्यक्ति उसे वासना कहने लगेगा कोई तीसरा व्यक्ति उसे लालच कहने लगेगा।
प्रेम की सबकी परिभाषाएं अलग अलग हो जाती हैं।
जब कोई ये कहता है कि प्यार वो अनुभूति है जो हमें अकेला होने से बचाती है या मेरे चेहरे पर मुस्कान ला देती है या जिंदगी की झुलसा देने वाली आग के बीच मेरी आत्मा पर पानी की शीतल बूंदें बरसाती है तब भी हम प्यार कि परिभाषा नहीं कर पाते हम प्यार कि उपयोग के बारे में चर्चा कर रहे होते हैं।
और तब मात्र प्यार हीं नहीं प्यार से जुड़ी तमाम कलाओं की परिभाषा लगभग असम्भव है।
हम क्या करते हैं हम उपयोग को परिभाषा समझने की भुल करने लग जाते हैं।

इसके बाद भी मन में एक सवाल तो जरूर आता है आखिर हम प्रेम करते हीं क्यूं हैं।
जैसा कि कहा जाता है करते नहीं हैं हो जाता है।
तो प्यार क्या है कोई क्रिया है कोई विचार है कोई मानसिक स्थिति है या हमारी यौन इच्छाओं को छुपाने के लिए पहना गया एक मुखौटा है ।
क्या हमारे दुनिया को प्यार की जरूरत है, क्या हमें सच में पार्क में बैठने वाली गाना गाने वाली, आंखों हीं आंखों में बातें करने वाली, इस टाईप के उस रोमांटिक प्यार कि जरुरत है हमें?
इनका जवाब न तो विज्ञान के पास है न हीं मनोविज्ञान के पास सबके पास अपनी अपनी सिद्धांत है, लेकिन किसी भी सिद्धान्त को सही नहीं माना जा सकता।
बुद्ध कहते थे प्यार वो सबसे बड़ा तोहफा है जो हम किसी को दे सकते हैं।

और इसी बात को आगे बढ़ाते हुए प्लेटो कहता था  प्यार हीं वो चीज है जो हमें सम्पूर्ण बनाता है, वरना हम तो संसार में अधूरे हीं आए और अधूरे हीं रहते।
कहीं प्यार एक प्रतीक्षा तो नहीं है जो अपनी आत्मा के दुसरे टुकड़े को खोज कर पा लेने के लिए प्रतीक्षारत रहता है।

अगर यही बात है तो प्रतीक्षा पुरी होने के बाद प्यार को समाप्त हो जाना चाहिए, या कहीं क‌ई बार इंसान एक से ज्यादा प्रेमियों के साथ खुद को सम्पूर्ण महसूस करता है।
एक प्रचलित मान्यता ये है कि प्यार तो एक हीं बार होता है और एक हीं से होता है।
ज्यादा लोगों से हो तो वो प्यार नहीं है वो वासना है। लेकिन यह बात कहां तक सही हो सकती है , प्यार इन सब के अलावा प्यास भी है , प्यार एक नशा भी है और एक बार पानी पी लेने से जिंदगी भर की प्यास मिट नहीं जाती।
कुछ लोगों का मानना है कि प्यार नदी की धारा की तरह है जो हर पल नया होता रहता है, आप चाहें तो एक हीं व्यक्ति से हजार बार प्रेम कर सकते हैं और चाहें तो हजार लोगों से अलग अलग तरीके का प्यार कर सकते हैं।
कुछ लोग खुश होने के लिए प्यार करते हैं तो कुछ लोग प्यार करने के बाद सामने वाले में इतनी खामियां खोजने लगते हैं कि चारों ओर बस दुःख हीं दुःख पसर जाता है।
एक जर्मन दार्शनिक ने कहा है कि लोग इस गफलत में प्रेम करते हैं कि ‌उनका प्रेमी उनको खुशी देगा जबकि इसी के साथ साथ उसने यह भी कहा है कि हमें दुसरे लोग खुशी कभी नहीं दे सकते सिर्फ हम हीं खुद को खुश कर सकते हैं।
दरअसल यह सब सोचना हीं समस्या की असली जड़ है, कुछ चीजें ऐसी होती है जिनपर चिंतन मनन करने से कहीं ज्यादा जरूरी ये है उनको जीना, प्यार भी बिल्कुल ऐसी हीं चीज़ है ।
प्यार पर दश किताबें पढ़ने से कहीं अधिक सुंदर बे है प्यार को दश मिनटों तक जीना।

जैसे शक्कर का स्वाद आप किसी को नहीं बता सकते उसे खुद अनुभव करना होता है, उसी तरह प्यार भी है।
वो नमकीन है या मिठा उसे जानने के लिए खुद प्रेम करना होता है।

यह आग का दरिया है या बर्फ का पहाड़ है, बिना ख़ुद प्रेम किए  इसे नहीं जाना जा सकता ।
यहीं पर बुद्ध की बात एकबार फिर उपयुक्त लगती है , दरअसल हम सभी अपने हीं एक प्रतिबिंब से प्यार करते हैं।
इंसान जैसा होगा उसका इश्वर भी वैसा होगा और फिर, उसका प्यार भी वैसा हीं होगा।

जिया हुआ प्रेम और सुना गया संगीत लौटकर जरुर आता है।

शब्दों के सागर में स्वयं को अनसुना पाते हुए भी किसी के मौन को समझते रहना प्रेम है !!

मनुष्यता और इस दुनिया को या तो प्यार बचायेगा या फिर प्यार कि स्मृति, दोनों जगह प्यार है।

कबीर साहब भी कहते हैं ,

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोय। 
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।

वहीं पर एक और अद्भुत दोहा आता है, 

"प्रेम गली अति सांकरी तां में दो न समाएं"

यह दोहा अपने आप में दर्शन है, ये कहीं न कहीं अद्वैत से जुड़ा हुआ है अगर तुम प्रेम करने के बाद भी दो बने रहे तो तुम प्रेम की गली में चल नहीं सकते।
प्रेम करने के बाद तो दो के बजाए एक हो जाया जाता है।
एक होकर हीं प्रेम की गली से गुज़रा जा सकता है।
मैं और तुम की अनुभूति बनी रही यह अलगाव बना रहा तो फिर प्रेम की गली तुम्हारे लिए नहीं है , प्रेम की गली में चलने के लिए सबसे पहले ये महसूस करना होगा कि मैं और तुम इसके भितर कोई अंतर नहीं है।
यही प्यार में अद्वैत की अनुभूति है।

स्मिता की लड़ाई खासकर प्यार के अनुभूतियों में भी अपनी पहचान को बनाए रखने की जो जिद है वो एक होने से रोक देती है।
हम प्यार तो करते हैं लेकिन एक दुसरे के भीतर शामिल नहीं होना चाहते, यह हमारे समय की बहुत बड़ी पीड़ाजनक स्थिति है, मेरा मानना है कि अगर आप प्रेम कर रहे हैं तो आप ये भूल जाइए कि आप -आप हैं वो -वो है, सिर्फ यह याद रखिए कि हम हैं, हम की जो अनुभूति है वही प्यार है यही प्यार आपको बचाकर रखेगी।
प्रेम का रंग एक होता है एकाकार करता है प्रेम, यही तो अद्वैत है।
प्रेम दरअसल एक तत्व है ये वो तत्व है जो पानी के भीतर भी है और बर्फ के भीतर भी है , दोनों का रुप अलग है दोनों का आकार अलग है लेकिन दोनों अंदर से एक हीं है, यही प्यार है।

नदी सूख सकती है, बहाव का रुख बदल सकता है पर नदी कभी उस पहाड़ को नहीं भूलती जहाँ से वो निकली थी, यही प्यार है।


हिंदी के सुप्रसिद्ध लेखक केदारनाथ सिंह लिखते हैं।

"उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए मैंने सोचा 
दुनिया को हाथ की तरह गर्म और सुंदर होना चाहिए।"

प्रेम अनंग है.. दृष्टि की दर्शन क्षमताओं से भी परे। अंतस में.. अस्तित्व में .. संपूर्ण में।❤️

🌹 CUH 10-03-2023

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