रंगोत्सव
निश्चित रूप से। मानव जीवन स्वयं ही अग्नि है। कैसे ? ऐसे, कि जीवन के प्रत्येक मोड़ पर, हर अग्नि कि लपट के साथ आपके अस्तित्व को भी परखा जा रहा है। इसमें आपकी भावनाएं, आपकी आकांक्षाएं, अनुभूतियाँ - समस्त सम्मिलित हैं। जीवन के उतार-चढ़ाव, हर कठिनाई, हर हानि, हर संघर्ष आपको नष्ट करने के लिए नहीं बल्कि आपको शुद्ध करने के लिए है। यही वजह है कि आग अंधाधुंध नहीं जलती- यह मिथ्या को राख में बदलकर, जो सत्य है उसे उजागर करती है। यह तपस्या का सार है, क्योंकि यह परिवर्तन की आध्यात्मिक अग्नि है। यह दुःख समझने के लिए जानबूझकर दुःखी रहने के बारे में नहीं है। यह जीवन की आग में स्वेच्छा से कदम रखने के बारे में है उन अनावश्यकताओं को त्यागने के बारे में, जो हमें शुद्धि से दूर ले जाती हैं। उपनिषद हमें बताते हैं कि तपस्या के माध्यम से, सर्वोच्च को प्राप्त किया जाता है। अर्थात, हमारे जीवन में आने वाले सभी बड़े परिवर्तन चाहे व्यक्तिगत, आध्यात्मिक, या सामाजिक-तपस्या के माध्यम से आते हैं। यह तब तक संभव नहीं है जब तक हम हमारे लक्ष्यों के प्रति दृढ न हों।
लेकिन यहां विरोधाभास है। जबकि परिवर्तन मुक्तिदायक है, यह भयावह भी है। अहंकार विघटन से डरता है। यह नियंत्रण खोने, पहचान खोने, उन कहानियों को खोने से डरता है जिन्हें बनाने में उसने वर्षों बिताए हैं। यही कारण है कि हममें से अधिकांश लोग सच्चे आत्मनिरीक्षण से बचते हैं। हम आराम चाहते हैं। हमें विकर्षण लुभाते हैं। हम बाहरी मान्यता चाहते हैं क्योंकि भीतर की ओर देखने का अर्थ है अपने सबसे गहरे डर का सामना करना। लेकिन हम कितना भी बचने का प्रयत्न करें, जीवन में आग लग ही जाएगी। एक समय आएगा और निश्चित ही आता रहेगा- जब हमारी परीक्षा होगी-हमारे रिश्ते, करियर, विश्वास प्रणाली, यहाँ तक कि हमारी आत्म-भावना की भी। प्रश्न यह है कि उस समय हम कैसे और क्या प्रतिक्रिया दें?
ऐसे में कुछ लोग प्रतिरोध करते हैं। वे भ्रम पसंद करते हैं, जैसे होलिका अपनी भ्रमित करने वाली 'सुरक्षा' से अज्ञान में डूबी रही। वह मानती रही कि वह अजेय है। लेकिन सत्य तो यह है कि भ्रम जलते हैं। झूठी पहचानें भस्म हो जाती हैं। और जब वे भस्म हो जाती है, तो जिसने अपना पूरा जीवन उन पर बनाया है, वह बिखर जाता है। वहीं, प्रह्लाद की तरह अन्य लोग, अग्नि में स्थिर खड़े रहते हैं, अछूते- इसलिए नहीं कि वे किसी दैवीय चमत्कार से सुरक्षित हैं, बल्कि इसलिए कि उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं है। यह श्रद्धा है- अटूट भरोसा होना। किसी बाहरी चीज में नहीं, बल्कि अस्तित्व के गहरे क्रम में। इस ज्ञान में कि विनाश के परे नवीनीकरण है। यह ज्ञान के माध्यम से ही संभव है।
भगवद् गीता में कहा गया हैः 'श्रद्धावान लभते ज्ञानम'। लेकिन श्रद्धा अंधविश्वास नहीं है। आस्था बिना घबराए आग के सामने आत्मसमर्पण करने की क्षमता है, यह जानते हुए कि जो वास्तविक है उसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता।
उदाहरण के लिए, प्रकृति को देखें- पेड़ शरद ऋतु में अपने पते गिरा देते हैं, सर्दियों के खालीपन से नहीं डरते, क्योंकि वे जानते हैं कि वसंत आएगा।
सुरज हर शाम ढलता है, फिर भी यह रात का विरोध नहीं करता। उसी तरह, हमारे जीवन में हर चुनौती भीषण गर्मी का मौसम है, कुछ बड़ा उभरने से पहले एक आवश्यक विघटन के समान। फिर भी, हम कितनी बार विरोध करते हैं? जब कोई रिश्ता खत्म होता है, तो हम उससे लड़ते हैं। जब जीवन योजना के अनुसार नहीं चलता, तो हम उसे दोष देते हैं। जब मन बेचैन होता है, तो हम विचलित हो जाते हैं। लेकिन अग्नि सिर्फ इसलिए जलना बंद नहीं करती क्योंकि हम इसे अनदेखा करते हैं। ऋषियों ने इसे समझा और हमें 'तपस' का ज्ञान दिया। यह शुद्धिकरण का सचेत आलिंगन है। उन्होंने अनावश्यक पीड़ा पर चर्चा न करते हुए सिखाया कि बिना भस्म हुए आग में से कैसे गुजरना है।
पतंजलि के योग सूत्र में इसे इस प्रकार कहा गया है:
'तपः स्वाध्यायेश्वरप्रणिधाननि क्रियायोगः'
अर्थात, आत्म-अनुशासन, आत्म-जांच और ईश्वर के प्रति समर्पण योग का मार्ग है। किन्तु हमारे दैनिक
जीवन में इसका क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि जो जल रहा है उसे छोड़ दें प्रतिरोध के साथ नहीं, बल्कि विश्वास के साथ। दुख को शुद्धिकरण के रूप में पहचाने, सजा के रूप में नहीं। जो अस्थायी है, उसके साथ अपनी पहचान बनाना बंद करें। आग में खड़े हों, पीड़ित के रूप में नहीं, बल्कि साक्षी के रूप में। इसका मतलब निष्क्रियता नहीं है। इसका मतलब अन्याय को सहन करना या विषाक्त स्थितियों में बने रहना नहीं है। इसका मतलब है यह समझना कि हर अनुभव चाहे वह दर्दनाक हो या आनंददायक हमारी बुद्धि को विस्तारित करने का निमंत्रणा है।
इतिहास इसका साक्षी है। महान क्रांतिकारी, आध्यात्मिक गुरु और सत्य के साधक सभी इसी आग से गुजरे हैं। बुद्ध ने खुद को समझने के लिए अपना राजसी जीवन छोड़ दिया। मीराबाई ने अस्वीकृति और उत्पीड़न के बावजूद, उस परम शक्ति के प्रेम के बारे में ऐसे गीत गाया जैसे दुनिया की कोई भी चीज उन्हें नुकसान नहीं पहुंचा सकती। नेल्सन मंडेला ने दशकों तक कारावास सहा, फिर भी प्रतिशोध के व्यक्ति के रूप में नहीं, बल्कि क्षमा के व्यक्ति के रूप में उभरे। उन्हें क्या अलग बनाता था ? उन्होंने अपनी आग का विरोध नहीं किया। वे इसके माध्यम से बदल गए।
हो सकता है कि हमें वास्तविक आग का सामना न करना पड़े, लेकिन हर दिन हमारी परीक्षा होती है। छोटी-मोटी परेशानियाँ, विश्वासघात, निराशाएँ, अप्रत्याशित नुकसान ये सब हमारी आग हैं। पौराणिक कहानियों की तुलना में ये मामूली लग सकते हैं, लेकिन ये हमारी 'ट्रेनिंग ग्राउंड' हैं। तो अगली बार जब आप दुःख का सामना करें, तो खुद से पूछेंः क्या मैं भ्रमित हूँ? क्या मैं आग से डर रहा हूँ? या मैं अछूता, अडिग, आग को वास्तविकता को प्रकट करने करने की अनुमति दे रहा हूँ? क्योंकि अंत में, आग तो लगेगी। आपको नष्ट करने के लिए नहीं, बल्कि वह सब कुछ जलाने के लिए जो आप नहीं हैं - और जो आपके लिए नहीं है।
ओम्
🌺♥️❤️🙌🍂🍁🌿
चैत्र कृष्ण पक्ष द्वितीया,
विक्रम संवत 2082
📍पठानकोट
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