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Showing posts from February, 2024

इश्क के तीन तह!

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इश्क के तीन मुकाम होते हैं ! पहला मुकाम है जब लड़की और लड़का एक दूसरे के प्रति सेक्सुअली आकर्षित होते हैं ।  यहां आकर्षण का एक मात्र कारण सेक्स होता है ।  शुद्ध सेक्स , यह एक दम शरीर के तल का स्टेप है ।  सबसे अधिक पीड़ा भी इसी तल पर होती है। आकर्षण खिंचती है, दोनों एक दूसरे से सेक्स करना चाहते हैं ।  यौन तृप्ति चाहते हैं । इसमें यदि बाधा उतपन्न हो किसी भी कारण से तो भारी पीड़ा होती है ।  यह जो लोग कहते हैं कि इश्क में बहुत तकलीफ होती है, वह वस्तुतः यही तकलीफ है ।  वह सेक्स की तकलीफ है ,वह यौन अतृप्ति है । दूसरा मुकाम बुद्धि का मुकाम है ,इंटेलेक्ट का मुकाम है ,मेंटल आकर्षण का स्टेज है ।  जब सेक्स की आंच धीमी पड़ती है ,जब सेक्स में कोई बाधा नही रहती है ।  जब दोनों साथ रहते हैं और जब मर्जी तब सेक्स करने के लिए स्वतंत्र रहते हैं, सेक्स करते हैं तृप्त होते हैं ।  तब मेंटल ट्यूनिंग है जो इश्क को अगले स्टेप पर ले जाती है, बुद्धि के लेवल पर ,नही बैठे ट्यूनिंग तब एक खिंचाव उतपन्न होता है ।  दोनों को ही लगता है कि दोनों ही एक दूसरे की ब...

बसंत 🌱 पंचमी।💛

कर्तव्यों की यात्रा होनी चाहिए भविष्य के आदर्श की स्थापना की। ये यात्रा होनी चाहिए, स्वयं को परिष्कृत, परिमार्जित करने की, चरित्र की स्थापना की, व्यक्तित्व के अनवरत विकास की। ये यात्रा होनी चाहिए परिवार के आदर्श की, समाज के दिव्य संस्कार की, लोकमंगल के अपार धैर्य की, समाज में समन्वय के प्रतीक की। ये यात्रा ऐसी होनी चाहिए जिससे यह स्पष्ट हो कि जीवन के विभिन्न चरणों में आपका कर्म क्या हो। कर्तव्य यात्रा अनवरत चलती रहे। आज बसंत पंचमी के महान पर्व पर आप सभी को बसंत ऋतु के आगमन और विद्या की देवी मां सरस्वती पूजा पर्व की अनंत शुभकामनाएं। ऋतुराज बसंत हम सभी के ज्ञान की परिधि को अनंत तक पहुंचाए। सोचने की क्षमता को सुदृण करें। विवेक के उच्चतम स्तर तक पहुंचाए और हमें संवदेनशील बनाए रखें। बसंत की ऊष्मा से हम सर्वदा सुचारू रहें। बसंत हमारी जड़ता को समाप्त कर हमारे जीवन प्रवाह का अनंत प्रसार करते रहें। मां सरस्वती हम सभी की चेतना को ज्ञानोन्मुख करें।

प्रकृति अद्वैत और मानव

अब तक हुए सबसे बेहतरीन मनोविचारकों में से एक एरिक फ्रॉम ने कहा है कि मनुष्य की मूलभूत कठिनाई ये है कि, है तो वो प्रकृति का एक अंग पर जीवन प्रयन्त कोशिश करता है प्रकृति से अलग हो जाने के लिए ! यही दिक्कत है मनुष्य के साथ । वह है तो मौलिकतः पशु ही लेकिन जीवनपर्यंत यह सिद्ध करने की कोशिश में लगा रहता है कि वह कुछ अलग है ! भिन्न है । यह भिन्न होना वैसा ही है जैसा हिरन भिन्न है चीते से । शार्क भिन्न है बाज से । कबूतर भिन्न है कुत्ता से । ऐसे ही मनुष्य भिन्न है अन्य पशुओं से । पशुओं में एक पशु है मनुष्य । तथाकथित धर्मों ने इसमें बड़ा रोल अदा किया कि मनुष्य अपने को प्रकृति से ऊपर समझे। प्रकृति से अलग होने की जो भावना है यह पहले मनुष्य में धर्म के द्वारा पैदा हुआ और फिर विज्ञान के द्वारा । धर्म और विज्ञान दोनों ने मिलकर मनुष्य के मन को प्रकृति से तोड़ दिया । ऐसा कि मनुष्य के मन और प्रकृति में एक द्वैत पैदा हो गया है। 99 फीसदी से भी अधिक तकलीफ इसी द्वैत की वजह से है। जो कोई भी इस द्वैत को लांघ प्रकृति और स्वयं के बीच अद्वैत को महसूस कर लेता है; उसका जीवन अत्यंत सरल और सुखद हो जाता है। मिट्...

यथार्थ 🌱

जिंदगी में कंसेप्ट क्लियर रखिए। यहां कोई किसी के लिए अनन्य रूप से नही है। इंसान अकेला आता है और अकेला निकल लेता है । संग साथ बनते हैं। संग साथ का एक मात्र आधार सुख है । यदि कोई आपके साथ सुखी महसूस करता है तो वह आपका साथ चाहेगा । सुख नही तो वह किनारे हो जाएगा । सुख सेक्स का हो सकता है, सुख भोजन का हो सकता है, सुख सेवा का हो सकता है, सुख सिर्फ बात करने का हो सकता है, सुख महज साथ बैठे होने का हो सकता है। सुख होगा तभी कोई साथ होगा । अन्यथा हो कर भी सम्भव है कि साथ नही हो । कल किसी को आपके साथ सुख मिलता था । कल आपके साथ था । आज नही मिल रहा है तो नही होगा । आप कह सकते हैं कि यह बात सत्य नही है। क्योंकि फेमिली में लोग दुख में भी साथ होते हैं। वो दुख में भी साथ होते हैं क्योंकि वहां दायित्व निभाने का सुख है। ईगो की तुष्टि है। कि दुख में भी मैं साथ हूँ; यह कहने का भी सुख है । फंडामेंटली यहां कोई किसी के लिए नही है। हर कोई अकेले आता है और अकेले चला जाता है। साथ कोई है तो इसलिए कि साथ सुख दे रहा है। आनन्द दे रहा है। सुख खत्म साथ खत्म !