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Showing posts from January, 2023

प्रेम इस तरह किया जाए।

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प्रेम इस तरह किया जाए कि प्रेम शब्द का कभी जिक्र तक न हो चूमा इस तरह जाए कि होंठ हमेशा सफलत में रहें। तुमने चूमा या मेरे ही निचले होंठ ने औचक ऊपरी को छू लिया छुआ इस तरह जाए कि मीलों दूर तुम्हारी त्वचा पर हरे-हरे सपने उग आएँ तुम्हारी देह के छज्जे के नीच अंधेरे रंग बजाएँ रहा इस तरह जाए कि नींद के भीतर एक मुस्कान तुम्हारे चेहरे पर रहे जब तुम आँख खोलो, वह भेस बदल ले प्रेम इस तरह किया जाए कि दुनिया का कारोबार चलता रहे किसी को खबर तक न हो कि प्रेम हो गया खुद तुम्हें भी पता न चले किसी को सुनाना अपने प्रेम की कहानी तो कोई यक़ीन तक न करे बचना प्रेमकथाओं का किरदार बनने से वरना सब तुम्हारे प्रेम पर तरस खाएँगे ।

चित्र, दर्शन और जीवन।

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बोलना एक बात है, लिखना दूसरी बात है और बोलते हुए लिखना तीसरी बात है। लेकिन जरूरी नहीं बोलते और लिखते हुए ही अपनी बात कही जाए। पहले बोला, फिर लिखा और फिर बोलते हुए भी लिखा। पर फिर भी बहुत कुछ ऐसा था, जो नहीं कह पा रहा था। कहीं कुछ तो था,जिसको शब्द,स्वर,आवाज से न समझ पा रहा था और ना समझा पा रहा था। कुछ देख कर उसे व्यक्त करने का मन करता था। पर व्यक्त हो नहीं पाता था।उसको जैसे देखा,बिल्कुल वैसे ही व्यक्त करना चाहता था।पर समस्या यह थी कि बिल्कुल वही कैसे कहा जाए,क्योंकि लिखने और बोलने पर वह बदल जाता था। भाषा लिखित हो या मौखिक,है तो सिर्फ अभिव्यक्ति का माध्यम।इस अहसास ने अंतरात्मा को निरंतर कहने-सुनने-सुनाने-समझने-समझाने के नए माध्यमों को समझने की लालसा पैदा की जैसे सामने कोई सिद्धांत नजर आया तो जरूरी नहीं सिद्धांतों को गद्य-पद्य-लेख-लेखनी-समीकरण या किसी रोचक प्रकरण से समझाया जाए चित्रों से भी समझाया जा सकता है।कुछ सिद्धांत अपनी पूर्णता में सिर्फ चित्र से ही समझ आ सकते हैं।ऐसे ही मन में उठने वाले बहुत सारे विचार,दृष्टिकोण और सिद्धांत जब सामने दिखे तो उन्हें चित्र के म...

संक्रांति

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जैसे हो रहा है प्रकृति का ऋतु परिवर्तन,  वैसे ही बदलता जा रहा है मानव मन का भी मौसम, पर्यावरण के हिमयुग सा प्रेम सहिष्णुता की उष्मा त्याग,  सम्वेदनाओं का भी हो रहा है हिमीकरण संवेदनहीनता, स्वार्थलोलुपता की बढ़ती सर्दी में तय है मनुष्य सभ्यता का विनष्टीकरण।

सर्द सुबह

सर्द सुबह में सुरज भी कोहरे की चादर तान करवट ले अलसा रहा है,  उसे भी नहीं छोड़ना अपना बिछौना, आँखे मींच, धुंध में छुपा जा रहा है...  प्रतीक्षित आँखे राह तकती है,  क्या सूरज को भी अपना सूरज नजर नहीं आ रहा है..?

सांझ डायरी 📝

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राजपथ के किनारे पर बैठी लड़की कि नज़र अस्ताचल (डूबते )सूर्य कि लालिमा पर पड़ी और उसकी आँखे चमक उठी उसने तुरंत उस बेहद दिलकश नज़ारे को साझा करने के लिए बगल ही में बैठे प्रेमी से कहा देखो मुझे उसमे तुम ही परिकल्पित हो रहे हो..... तुम्हारा नाम क्षितिज कि लाल बिंदी बन गया है...... प्रेमी ने उसकी उत्सुक आँखों में डूबते हुए हिंदी फिल्म के गाने कि एक की रचना दोहराई  ''तेरे चेहरे से नज़र नहीं-- हटती नज़ारे हम क्या देखें'.... लड़की समझी सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड इसी एक पंक्ति में सिमट आई है ...... समय के घूमते परीधि पर एक शाम ऐसी भी आई जब उसी लड़की ने अस्ताचल सूर्य को देख प्रेमी को देखा और उसने कहा...... क्या ? कुछ कहना चाहती हो ?  फिर कुछ समय बाद अनन्त निस्तब्धता फैल जाता है। जीवन भी तो ऐसा ही होता है, अस्ताचल के शिखर पर पहुंचकर एकाएक दृष्टीगोचर हो जाता है। 👀👀

प्रेम 🌱

सागर किनारे पर हम लहरों से इतनी दूरी बनाकर बैठते हैं कि हम उसे वहीं बैठ कर घंटों तक बस देखते रहें या निहारते रहें..तभी अचानाक से एक लहर इतनी बड़ी आती है कि हम जल्दी से उठकर उन्हीं लहरों से दूर भागते हैं जिन्हें अभी हम इतने गौर से देख रहे थे कि हमारी पलकें तक झपकने से पहले कई बार सोच रहीं थीं कि कहीं हम कुछ मिस न कर दें..लेकिन अचानक उसे पास आता देख हम भागते हैं ताकि वो हमें छूकर कहीं हमें भिगो न दे.. और जब हमारे लाख कोशिश के बाद भी वो लहर हमें भिगो ही देती है तब हमारा सारा घमंड वहीं उसी लहर के साथ बह जाता है और समंदर में मिल जाता है..हमे एहसास होता है कि हम कितने छोटे हैं इस दुनिया में, और ये दुनिया मे कितना कुछ है जिसके सामने हमारी कोई औकात ही नहीं.. जब कभी मैं तुम्हें भी गुस्से में एक टक घूर रहा होता हूँ, लगता है तब तक तुम्हें घुरुं जब तक तुम मुझसे डर कर अपनी नज़रें नीची नही कर लो..और तभी तुम हल्के से मुस्कुरा देती हो..यह मुस्कान ठीक उसी लहर की तरह होती है जो मुझसे मेरा तमाम क्रोध अपने साथ लेकर कहीं तुम्हारी आँखों के समंदर में ही गुम हो जाती है..और मैं बस खड़ा रह जाता हूँ.. भागने की लाख...